By: OP Singh
117
ISBN: 9788183285391
Number of pages: 186
Weight: 350 grams
Dimensions: 21.59 X 13.97 X 1.27 cm
Binding: Hardcoverआज के दिन एक अलग किस्म का विश्वयुद्ध छिड़ा हुआ है। इस बार लड़ाई इलाके पर कब्जे के लिए नहीं है। दाँव पर आदमी का ध्यान है। जंगे-मैदान में मोबाइल एप और वेबसाइट हैं। ध्यान को कब्जाने के लिए कंपनियाँ दुनिया-भर के हथकंडे अपना रही हैं। जो जितने अधिक लोगों को जितनी देर तक उलझाए रख सकता है, उसका मार्केट वेल्यू उतना ही ज्यादा होता है। फेसबुक करीब ढाई-सौ करोड़ लोगों को फँसाये बैठा है। वे रोज घंटों इस पर अपने दिमाग को हैक करने का तरीका अपने-आप ही बताते रहते हैं। अधिकतर को पता ही नहीं कि इन्हीं जानकारियों को फेसबुक किसी और ध्यान के शिकारी को बेचकर अरबों-खरबों कमा रहा है। यह तो एक उदाहरण-मात्र है। मैदान में ऐसे लाखों खिलाड़ी हैं। आने वाले दिनों में यह प्रक्रिया और भी तेज होगी। सब मानते हैं कि डाटा नया डीजल-पेट्रोल है। महँगा बिकने वाला है। शोर मचा है कि इसका राष्ट्रीयकरण होना चाहिए। देश का डाटा देश में ही रहना चाहिए। हमें सम्मोहित करने और हमसे अनजाने मनचाहा कराने की लड़ाई इतनी चौतरफा कभी नहीं थी। ऐसे में जरूरी है कि हमारे जीवन को लगभग रोज ही छूने वाले मुद्दों पर हमारा नजरिया तथ्यपरक हो। चाहे वो भाग्य हो या खुशी, खेल हो या व्यापार, पुलिस हो या आतंकवाद, हमें आँखें मूँदकर कानों सुने पर ही राय नहीं बना लेनी चाहिए। देखें, सुनें, तोल-मोल करें, फिर मन बनाएँ। तभी हम शिकार होने से बच सकते हैं। कारगर बने रह सकते हैं। जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गप और सूचना की खाई को पाटने की कोशिश है। मोबाइल और कंप्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टम के अपग्रेड जैसा है। इस बात का हरकारा है कि हवा-हवाई के बजाय तथ्य और शोध को अपनी कथनी-करनी का आधार बनाएँ। दिमागी फिल्टर को साफ करते रहें जिससे कि ये कचड़े से बचा रहे और आप लफड़े से।
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